Wednesday, November 12, 2008

अस्तित्व

कैसे लिख दूँ अपना असिस्त्व
जिसे तुमने हर बार झुठलाया है
कैसे भूल जाऊं सारी बातें
जिन्हें तुमने सौ बार दोहराया है
कैसे रोक लूँ उन अश्रुओं को
जब तुमने हर पल मन को रुलाया है
विश्व की क्या बात करूँ
जब तुम्हे ही देवता बनाया है
अपनाने का पहलू कहाँ से लाऊं
जब तुमने हर बार ठुकराया है
साथ रहकर कहाँ चलूँ
जब तुम्ही ने मुझे भटकाया है
अपनी नई पहचान कहाँ से लाऊं
जब तुमने ही आज़माया है
चाँद की शीतलता लेकर क्या करूँ
जब तुमने ही हर पल जलाया है
इस जीवन का क्या करूँ
जिसे तुमने अवहेलनाओं से सजाया है
आस की बात नही है
और अब कुछ साथ भी नही है
और कुछ नही तो क्या हुआ
दर्द के रिश्ते को तुमने क्या खूब निभाया है

1 comment:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

..........आप जो भी हों.....आप भी ना गजब हो....बिना एक कप चाय की भी पूछे....धडाधड एक-के-बाद-एक कवितायें सुनाये जा रहे हो...और हमें धरती की फोटो दिखा-कर बहलाए जा रहे हो....??चलिए-चलिए अपना काम कीजिये.....अब हमें अच्छा भी लगेगा ना...तो नहीं बताएँगे....जब तक आप अपना चेहरा हमें नहीं दिखलायेंगे.....!!