Wednesday, August 16, 2017

जीवन क्या है? ये किसने जाना है? मुझे तो जीवन बस मिथ्या ही दिखता है | लोगों के चेहरों पर चेहरे हैं | सब दोहरी ज़िन्दगी जी रहें हैं |
कभी कभी लिखने के लिए कुछ भी नहीं होता | बस शब्दों का कश्मकश होता है | बस इतना कह सकती हूँ की जीवन की कुछ गलतियां सुधारी नहीं जा सकती हैं |
कविता लिखने का शौक हमेशा से था| कई कवितायें भी लिखी पर सबको एक डायरी  में कैद कर दिया | यह सोचकर की ये सारी कवितायें उस ख़ास शक्श के लिए है जो मुझे समझेगा पर आज एहसास हुआ की अब समझने समझाने का तो वक़्त ही निकल गया है|  मैंने उसे ख़ास माना है पर वो ख़ास है नहीं | एक कवि  को मैंने अपने अंदर ही दफना दिया था परन्तु अब वक़्त आ गया है उस कवि को जागने का | अपनी ज़िन्दगी जीने का | एक ऐसी ज़िन्दगी जो हम जीना चाहते है| जिसके रंग तो मैंने सोच लिए लेकिन कभी भर नहीं पाए |
जीवन तो हथेली से फिसलता चला जाता है और ज्यादातर जीवन ऐसा होता है जैसे हमने सोचा नहीं होता | संघर्ष तो जीवन का हिस्सा होता है किन्तु सफलता बिना संघर्ष इन्सान को तोड़ देता है |
लोग अपनी धुन में चले जा रहे है | आज आईने में चेहरा देखा तो जाना की वक़्त बीत गया और वक़्त बदल गया | वो चुलबुली सी बड़े बड़े सपने देखने वाली अब कहीं खो गयी | सुंदरता पर गुमान करने वाली आज आईना देखने से भी कतराती है | आखिर क्यों? क्यों लोग अपनी ख़ुशी भूल जाते है ?
क्यों जीवन सरल नहीं लगता |