Friday, September 26, 2008

Wo pal jise kabhi jiya hi nahi

अब सिर्फ तारीखों से पहचान बाकि है| ज़िन्दगी कहाँ से कहाँ पहुँच गई | कभी कभी मन करता है की अपनी पलकें बंद करूँ और सब बदल जाए , अपनी गलतियों को सुधार लो जो शायद कभी मैंने की थी |ज़िन्दगी से कभी रूबरू हो पाऊं ऐसी उम्मीद नहीं | बस सोचती हूँ की शायद अपने एहसास में ही इसे जी लूं | वक़्त तो थमेगा नहीं |Kuch rishte aise hote hai jinhe jiya nahi jaa sakta , jo sirf yaad bankar reh jaate hai, shaayad sabse priya rishta bhi aisa hi hai. Kahin man bhatakta hai . Jaane kyun ?