Thursday, October 30, 2008

बिखरे पल

पल पल तुमने बिखेरा है
कैसे मै चुन पाउँगी
उस आंधी ने लौ बुझा दिए
अंधकार में कैसे नई उम्मीद जलाऊंगी
कुछ पल तो बूँद बन बरस गए
अब दर्पण से कैसे कुछ कह पाउँगी
भुला दिए तुमने सारि बातें
मै ख़ुद को कैसे भूल पाउँगी